THIS IS A POEM DEDICATED TO NIRBHAY DAMINI
निःशस्त्र -निडर निर्भया DATED-01/01/2013
माँ-पापा ने जिसको
बचपन से पलकों पर बिठाया,
बचपन से ही लाड़ प्यार में पाला ,
उड़ गयी वो चिड़िया !
उड़ गयी वो चिड़िया ,
ज़िन्दगी के पिंजरे से ;
एक कला साया
जिसमें रहना मुश्किल ही नहीं
नामुमकिन सा उसने पाया।
उसके हथियारे आदमियों ने
उसकी इज़्ज़त पे हाथ उठाया
सो भागने की कोशिश में
उसने खुद को बेइज़्ज़ती में मदहोश पाया !
लड़ती रही पर झुकी नहीं-
आखिरी साँस तक वो।
उसके मन के विरोध की लहर-
बनी सबके मन का ज़हर !
सबने विरोध शुरू किया
और उसके लिए लगा दी
न्याय पाने के लिए विरोध की नहर !
- पार्थ भंड़ारी
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